close logo

मैं मुन्ना हूँ- लेखक- मनीष श्रीवास्तव

जिस प्रकार वनस्पति घी डालडा होता है, जैसे प्रतिलिपि ज़ेरॉक्स होती है, मनीष श्रीवास्तव जी श्रीमान जी होते हैं। कम लोगों को पाठकों का इतना स्नेह प्राप्त होता है, जो उनके कृतित्व एवं लेखन से आगे निकल जाता है। इसका कारण उनके लेखन में सत्य का प्रतिबिम्ब परिलक्षित होना होता है जो पाठक ने उनके व्यक्तित्व में देखा सुना हो। लेखन मेरी दृष्टि में वह माध्यम होता है जिसके द्वारा अपने सत्य को वह कपोल कल्पना का आवरण पहना कर सार्वजनिक कर देता है और आत्मा को एक पिशाच के बोझ से मुक्त कर पाता है। कलम के माध्यम से लेखक वह कहने का साहस जुटा पाता है जिसे अन्यथा वह संभवतः न कह पाए।जब कोई कृति यह कर पाती है तो वह न केवल लेखक की आत्मा के पिशाच हटाती है वरन पाठक की आत्मा के धागों पर लगी गिरहें भी खोल देती है और उसके मानस को मुक्त कर देती है। इस दृष्टि से मनीष की यह पुस्तक “मैं मुन्ना हूँ” अपने दायित्व का पूर्णता से निर्वाह करती है।

हमारा सबका जीवन एक दूसरे से भिन्न होता है, परन्तु कहीं प्रत्येक जीवनधारा के अंतर में जो तरंगे बहती हैं वे सामान ही होती हैं। हम जन्म लेते हैं, समाज में अपना स्थान बनाने का प्रयास करते हैं, प्रेम में पड़ते हैं, प्रेम से बाहर भी गिरते हैं। हम जीवन में अपना उद्देश्य खोजते हैं, कुछ मित्र पाते हैं जो हमें हमारे उद्देश्य के निकट ले जाते हैं। वहीं हम कुछ ऐसे लोगों से भी मिलते हैं जो हमारे पैरों को लौह श्रृंखलाओं से बाँध देते हैं। हमारा जीवन इन्हीं दो शक्तियों के मध्य के संघर्ष की कथा है।

लगभग साढ़े तीन सौ पृष्ठों की यह कहानी, कथानायक मुन्ना के साथ साथ चलती है। मुन्ना, पाँच वर्ष का मुन्ना, शोषण का शिकार होता है उस आयु में जब उसे इसका अर्थ भी नहीं समझ आता। एक बालक कैसे एक अनगिनत रिश्तों के धागों से बंध कर, उन रिश्तो के तनाव से गढ़ा और यदि वे रिश्ते कहीं भी उचित तारतम्य से भटकते हैं तो कैसे एक टूटे हुए वयस्क का निर्माण कर देते हैं इस की एक कथा है यह उपन्यास। कहानी छोटे शहरों की है, कस्बायी परिवेश की पृष्ठभूमि पर उकेरी गयी है। आगरा का एक बालक स्वयं शारीरिक प्रताड़ना का शिकार हो कर, कृष्ण-रूप में एक चरित्र को अपने जीवन में पाता है जब सोहन -संजू को भाई -बहन के संबंधों को भी कलंकित होते हुए पाता है, और जब उसके चारों ओर का संसार खंड खंड हो कर टूट था, किन्नू उसका हाथ थामता है और एक सामान्य बालक के कैशोर्य की, यौवन की कथा लिखने योग्य बना देता है। कृष्ण एक बार और केशव बन कर काठमांडू में मुन्ना की रक्षा को आते हैं। कहानी में छोटे शहरों का बड़ा प्रेम युवाओं को बड़ा आनंद देने वाला हैं, घटनाएँ वास्तविकता के निकट हैं। मेरी समझ में घटनाएँ बहुत सी हैं इस कथा में।

एक कहानी में अनेक कहानियाँ मनीष जी के उपन्यास में पहले भी रही हैं, और बहुत सारे पात्र एवं घटनाएँ। अपने अंतिम चरण में सन्दर्भ लेखक के निकट होते जाते हैं, अनेक प्रेम प्रसंगों से होते हुए, मोरपंखी से मानसी से नैना। कथा के प्रारम्भ में एकत्रित काले बादलों का तिमिर उपन्यास के अंत तक छटने लगता है। लेखक मेरे बहुत प्रिय हैं एवं विषय जो उन्होंने उठाया बहुत ही संवेदनशील एवं परिपक्व है। ऐसे कठिन विषय का कहीं भी फिसल जाना बहुत संभव था परन्तु मनीष को साधुवाद जो उन्होंने साहस एवं संवरण के मध्य एक उत्तम संतुलन बनाये रखा। मनीष के पहले उपन्यास की भाँति राजनीति एवं समसामयिक क्लेश से कथा को दूर रखा गया है एवं बाल यौन शोषण को केंद्र में रख कर लिखा गया है। एक व्यक्ति के जीवन में रिश्तों का महत्त्व एवं संबंधों की हर टूटती ईंट के साथ टूटते व्यक्ति की कहानी है। किसी समाज के लिए उसका सबसे भेद्य, संवेदनशील एवं मूल्यवान वर्ग उसके बालक-बालिका होते हैं एवं आज के बालक ही कल के समाज एवं राष्ट्र का निर्माण करते हैं। आवश्यक है कि उन्हें उसी दृष्टि से सुरक्षा एवं स्नेह प्रदान किया जाए। सुमित्रा नंदन पंत जी की पंक्तियाँ थीं –

 

‘यह शैशव का सरल हास है, सहसा उर से है आ जाता ,

यह उषा का नव विकास है, जो रज को है रजत बनाता।’

 

इसी शैशव की सुरक्षा की परिकल्पना को लेकर और खण्डित होते शैशव के मूक क्रंदन को स्वर देता यह उपन्यास है। मेरा क्लेश उपन्यास के अंतिम चरणों में अलग दिशा में जाना और कुछ भागों में देवनागरी का परित्याग है जो पाठन के वेग को बीच में कुछ रोक सा देता है। यह मेरा अपना मत हो सकता है, क्योंकि संभवतः दोनों के कारण कथा आधुनिक पाठकों को अधिक प्रिय एवं रोचक लगे। अपने उद्देश्य एवं सन्देश के लिए उपन्यास पढ़ा जाना चाहिए।

पुस्तक नोशन प्रेस  और अमेज़न पर उपलब्ध है।

(यह समीक्षा पहले www.saketsuryesh.net में प्रस्तुत किया गया था।)

(Image credit: http://www.saketsuryesh.net)

Disclaimer: The opinions expressed in this article belong to the author. Indic Today is neither responsible nor liable for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in the article.

Leave a Reply