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तन्त्रयुक्ति- एक प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक-सैद्धान्तिक ग्रन्थ निर्माण पद्धति- भाग -२

पिछले भाग में हम आपसे तन्त्रयुक्तियों की चार महत्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में आरंभिक चर्चा कर रहे थे।

  1. तन्त्रयुक्ति सभी वैज्ञानिक और सैद्धांतिक ग्रंथों की रचना पद्धति के रूप में 1500 से अधिक वर्षों के लिए प्रभावशाली थी।
  2. तन्त्रयुक्ति का अखिल भारतीय प्रसार था ।
  3. तन्त्रयुक्ति में एक व्यवस्थित ग्रन्थ की संरचना के लिए सभी मूलभूत पहलू शामिल हैं।
  4. तन्त्रयुक्ति को ग्रन्थ की आवश्यकताओं के अनुसार अपनाया जा सकता है।

अब इन चार बिंदुओं में से पहले बिंदु पर विस्तार से विचार करतें हैं।

लगभग १५०० वर्षों के लिए प्रभावशाली तन्त्रयुक्ति

तन्त्रयुक्तियों की रचना की अवधि संभवतः सामान्य युग के पेहले, छठी शताब्दी की है। (Vidyabhushana, 1970,p.24) विभिन्न अवधियों और विषयों से संबंधित ग्रंथों ने इन युक्तियों का उपयोग किया है। उसी की एक कालानुक्रमिक प्रस्तुति नीचे दी गई है।

(i) अर्थशास्त्र

कौटिल्य का अर्थशास्त्र पहला ग्रन्थ है जो तन्त्रयुक्तियों का पूर्ण विवरण दिया था। यह एक ज्ञात तथ्य है कि अर्थशास्त्र राजनीति और राज्य-व्यवस्था पर एक प्राचीन भारतीय ग्रंथ है। कौटिल्य अर्थशास्त्र के अंतिम अधिकरण का शीर्षक तन्त्रयुक्ति रखा गया है, जो बत्तीस तन्त्रयुक्तियों को परिभाषित करता है और ग्रंथ में इसके उपयोग के उदाहरण देता है। कौटिल्य की अवधि के बारे में विभिन्न विचार हैं। उन का अवधि सामान्य युग के पहले चौथे शताब्दी से सामान्य युग के तीस्त्री शताब्दी के बीच रखा गया है। (Lele, 2006, pp.8-9)

(ii) न्यायसूत्र भाष्य

न्यायासुत्र के भाष्यकार वात्स्यायन भी तन्त्रयुक्तियों से परिचित थे। उन्होंने गौतम के न्यायसूत्र के पहले अध्याय के पहली आह्निक के चौथे सूत्र पर चर्चा करते हुए ’अनुमत’ तन्त्रयुक्ति का उपयोग किया है। न्यायसूत्र भाष्य की रचयिता वात्स्यायन की काल आम तौर पर सामान्य युग के चौथी शताब्दी के रूप में स्वीकार किया जाता है। (Jha, 2009,p.165)

(iii)चरकसंहिता

चरकसंहिता के सिद्धिस्थान के बारहवें अध्याय के श्लोक ४१ – ४५ में, छत्तीस तन्त्रयुक्तियां संकलित हैं। चरकसंहिता में तन्त्रयुक्ति की प्रस्तुति का क्रम अर्थशास्त्र से भिन्न है। कुछ युक्तियों के नामकरण भी समान नहीं हैं। चरक की अवधि लगभग सामान्य युग के पहले पहली शताब्दी है। (Lele, 2006, p.10)

(iv)सुश्रुतसंहिता

सुश्रुतसंहिता शस्त्रचिकित्सा पर एक प्राचीनतम कृति है। सुश्रुत संहिता की रचना का काल के सामान्य युग पहली और तीसरी शताब्दी के बीच है। (Lele, 2006, p.11) इस ग्रंथ के पैंसठवें अध्याय में, बत्तीस तन्त्रयुक्तियों को सूचीबद्ध किया गया है।यद्यपि युक्तियों की संख्या अर्थशास्त्र के समान है, फिर भी सूचीबद्ध करने और परिभाषित करने का तरीका अलग है।

(v)अष्टांगसंग्रह

यह आयुर्वेद पर वाग्भट द्वारा लिखित एक ग्रंथ हैइस ग्रंथ के उत्तरस्थान के पचासवें अध्याय में छत्तीस तन्त्रयुक्तियों का उल्लेख है। वाग्भट का काल सामान्य युग की तीसरी या चौथी शताब्दी माना जाता है (Lele, 2006,p.12)। अष्टांगहृदय, जो उसी लेखक द्वारा एक अन्य ग्रंथ है, उस में भी तन्त्रयुक्तियों का उल्लेख है।

(vi) विष्णुधर्मोत्तर पुराण

इस पुराण के तीसरे खंड के छठे अध्याय में बत्तीस तन्त्रयुक्तियों को परिभाषित किया गया है। इस ग्रंथ की काल सामान्य युग की पाँचवीं और सातवीं शताब्दी के बीच माना जाता है। (Lele, 2006,p.13)

(vii) युक्तिदीपिका

यह ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका पर एक टीका है। इस का काल सामान्य युग कि छठी शताब्दी के आसपास का है। (Larson & Bhattacharya,1987, p.228) इस टीका की शुरुआत में, ग्रंथकार ने आठ युक्तियों का उल्लेख किया है और उन्हें इन युक्तियों को विभिन्न रूप से तन्त्रसंपत्, तन्त्रगुण और तन्त्रयुक्ति नाम दिया है।

(viii)तन्त्रयुक्तिविचार

यह तन्त्रयुक्तियों पर एक स्वतंत्र ग्रंथ है। यह नीलमेघ भिषक द्वारा लिखा गया था। इस ग्रंथ मे तन्त्रयुक्तियों के परिभाषाएँ और दृष्टांत चरकसंहिता का अनुसरण करते हैं। इस ग्रंथ मे छत्तीस तन्त्रयुक्तियों का उल्लेख है। नीलमेघ भिषक के काल सामान्य युग की नौवीं शताब्दी है। (Lele, 2006,p.14) तन्त्रयुक्तियों पर एक अन्य स्वतंत्र ग्रंथ भी है जिसका नाम तन्त्रयुक्ति है। ग्रंथ का लेखक अज्ञात है। जैसा कि आंतरिक साक्ष्यों से पता चलता है , तन्त्रयुक्तिविचार के बाद में बना इस ग्रंथ का काल दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी बता जाती हैं । (Lele, 2006, p.15) यह ग्रन्थ भी तन्त्रयुक्तियों को परिभाषित करता है और यह आयुर्वेद परंपरा का है।

(ix)ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविविवृतिविमर्शिनी, स्वच्छन्दतन्त्र और वामकेश्वरीमतविवरण

तंत्रशास्त्र के ये तीन ग्रन्थ हैं, जिन मे अनुमत, अतीतावेक्षण और अनागतावेक्षण, तन्त्रयुक्तियों का प्रयोग देखा जाता है। इन ग्रंथो का काल सामान्य युग के ग्यारह्वी और बारहवीं शताब्दी हैं (ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविविवृतिविमर्शिनी, स्वच्छन्दतन्त्र (समान्ययुग की ग्यारह्वी शताब्दी) और वामकेश्वरीमतविवरण (बारहवीं शताब्दी) (Jayaraman, 2009, p.99-102)।

इस प्रकार सामान्य युग के पहले चौथी शताब्दी से समान्य युग की बाराहवीं शताब्दी तक (लगभग 1500 वर्ष) संस्कृत वाङ्मय में हम तन्त्रयुक्तियों के संदर्भ पाते हैं। ऐसा ग्रंथ रचना पद्धति जो इतने लंबे समय से प्रचलन में थी , गैर-उपयोग में आ गया और फलस्वरूप उसे भुला दिया गया।

अगले अंक में हम आपसे दूसरी और तीसरी विशेषता पर चर्चा करने वाले हैं।

(इस श्रृंखला का प्रथम भाग)

(Image credit: Indian Palm Leaf Reading)

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