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रामात् नास्ति श्रेष्ठ – भाग २

वाल्मीकि रामायण में बालकाण्ड के पंद्रहवें सर्ग में ऋष्यश्रृंग द्वारा राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ का उल्लेख है। सोलहवें सर्ग में उस यज्ञ की फल प्राप्ति स्वरूप खीर का कटोरे का वर्णन है। वह खीर दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को खिलाई, कौशल्या को आधा भाग, सुमित्रा को आधे का आधा, कैकेयी को आधे का आधा और अवशिष्ट फिर सुमित्रा को दिया।

सभी विज्ञानों का मूल विज्ञान – जिस पर पूरी मानव जाति का विकास आधारित है – वह गर्भविज्ञान है। भारत की एक अद्वितीय खोज कही जा सकती है – आने से पहले अस्तित्व का विचार! गर्भ विज्ञान कहता है की माता-पिता संतान का चयन नहीं करते अपितु संतान माता-पिता का चयन करती है। गर्भ विज्ञान द्वारा दिव्य आत्मा अवतरण का श्रेष्ठ उदाहरण है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म!

संतान को तैयार करने से पहले माता-पिता को अपने को तैयार करना होता है। पुनः बालकाण्ड को इस दृष्टिकोण से जानने पर हमें ज्ञात होता है कि राजा दशरथ व उनकी रानियों ने लगभग दो वर्ष तक गर्भाधान अथवा संतान प्राप्ति के लिए अपने को तैयार किया। बृहदारण्यक उपनिषद के छठे अध्याय में जो वर्णन किया गया है वह गर्भविज्ञान के लिए अत्यंत आवश्यक है।

रामायण सम ग्रंथ लिखने की विशिष्ट आर्ष अथवा ऋषिनुकूल शैली होती हैं। उस भाषा शैली से मूल सत निकालें तो ज्ञात होता हैक कि गर्भधारण के लिए एवं वंध्यत्व को दूर करने के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ की विधि बताई गई है। पुत्रेष्टि यज्ञ की फलश्रुति रामायण में स्वर्णिम पुरुष के हाथ में खीर के कटोरे के रूप में प्रस्तुत करी गई है। वह प्रसाद पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए अति विशेष रूप से व अनिवार्य रूप से बनाया जाने वाला घृत है जिसे ‘मंथ’ कहा जाता है। मंथ विशेष नक्षत्र में बनाया जाता है। मंथ के सेवन के बिना पुत्रेष्टि यज्ञ असफल होता है। यजुर्वेद में पुत्रेष्टि यज्ञ की विधि वर्णित है।

जैसे राजा दशरथ ने गर्भ विज्ञान के अंतर्गत पुत्रेष्टि यज्ञ द्वारा राम जैसी दिव्य आत्मा श्रेष्ठ संतति के रूप में प्राप्त करी, उसी प्रकार रघुकुल जनक चक्रवर्ती सम्राट रघु (राम के पूर्वज) को भी उनके पिता राजा दिलीप और माता सुलक्षणा ने गर्भ विज्ञान की विद्या का प्रयोग कर संतति रूप में पाया था। रघु का साम्राज्य रामकालीन अश्वमेधीय साम्राज्य से कहीं विशाल था।

गर्भ विज्ञान के पाँच मुख्य सिद्धांत हैं : (1) योग्य माता-पिता, (2) संतति की तीव्रतम इच्छा, (3) अच्छी संतति के लिए दिव्यात्मा का आह्वान, (4) पंचकोष का विकास और (5) माता-पिता का पंचस्तरीय त्रिस्वास्थ्य। संतति के लिए दिव्यात्मा के आह्वान का उल्लेख चरक संहिता में विस्तृत है व दिव्य आत्मा आह्वान का मंत्र भी वर्णित है। यह स्मरण रखने योग्य है कि शरीर के संपर्क में आने से पहले दिव्य जीवात्मा का संपर्क भावी माता-पिता के मन से होता है। दिव्य आत्मा के अवतरण के लिए विशिष्ट विधि युक्त, अदृष्ट आपत्तिनाशक, संतति को उत्तम बनाने वाला, दिव्य-भव्य उच्च संतति का प्रेरक पुत्रेष्टि यज्ञ है, इसकी जानकारी, विद्या व प्रयोग लुप्तप्राय है, परंतु अभी भी अलभ्य नहीं है।

रामराज्य भारतीय संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ राज्यकाल माना जाता है। उसी रामराज्य की वापसी के लिए, रामतुल्य संतति होनी आवश्यक है। ऐसी उत्तम संतान को पाने का उपाय गर्भ विज्ञान में निहित है। राम सम संतान की सभी माता-पिता को कामना हो, ऐसी शुभेच्छा के साथ गर्भ विज्ञान को जानने की प्रेरणा हम सब को प्राप्त हो!

भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्। रघुनंद आनंद कंद कौशलचंद दशरथ नन्दनम्।

रामात् नास्ति श्रेष्ठ – भाग १

उद्धृत ग्रंथ:

आर्ष रामायण – श्री वाल्मीकि

रघुवंशम् – महाकवि कालिदास

गर्भ विज्ञान शोधकार्य – पंडित विश्वनाथ दातार शास्त्री जी, वाराणसी

छान्दोग्योपनिषद

वृहदारण्यक उपनिषद

उपनिषद रहस्य – महात्मा नारायण स्वामीजी महाराज, पण्डित भीमसेन शर्मा

पुत्रेष्टि यज्ञ – पण्डित सुरेंद्र शर्मा गौड़

Featured Image Credits: Pinterest

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