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जन-जन के मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम – भाग २

sita ram

गुणों के सागर प्रभु श्रीराम की महिमा के संबंध में कबीरदासजी ने भी बहुत ही सुंदर पंक्तियां कही है ;-

“सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।

धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥”

सबसे बड़ी बात यह है कि वह एक आदर्श राजा थे। आज भी लोग रामराज्य की कामना करते हैं। राज्य तो था ही राजा के लिए किंतु श्रीराम ने राजा का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसे आज तक कोई भुला नहीं सकता। आज समस्त संसार राम राज्य की कामना और अभिलाषा रखता है। महात्मा गांधी भी अपने देश में राम राज्य की स्थापना करना चाहते थे।

श्रीराम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता, यहां तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार, आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। श्रीराम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा “प्रान जाहुँ परु बचनु न जाई” की थी। श्रीराम हमारी अनंत मर्यादाओं के प्रतीक पुरुष हैं इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से पुकारा जाता है। हमारी संस्कृति में ऐसा कोई दूसरा चरित्र नहीं है जो श्रीराम के समान मर्यादित, धीर-वीर, न्यायप्रिय और प्रशांत हो। इस एक विराट चरित्र को गढ़ने में भारत की सहस्रों प्रतिभाओं ने कई सहस्राब्दियों तक अपनी मेधा का योगदान दिया।

आदि कवि वाल्मीकि से लेकर महाकवि भास, कालिदास, भवभूति और तुलसीदास तक न जाने कितनों ने अपनी-अपनी लेखनी और प्रतिभा से इस चरित्र को संवारा। वाल्मीकि के श्रीराम लौकिक जीवन की मर्यादाओं का निर्वाह करने वाले वीर पुरुष हैं। उन्होंने लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध किया और लोक धर्म की पुनः स्थापना की। लेकिन वे नील गगन में दैदीप्यमान सूर्य के समान दाहक शक्ति से संपन्न, महासमुद्र की तरह गंभीर तथा पृथ्वी की तरह क्षमाशील भी हैं।

भारतवर्ष में देहात हो या कस्बा,नगर हो अथवा महानगर लगभग हर किसी के मन में राम रचे,बसे हुए हैं। आज सामान्य रूप से मिलने पर भी अधिकांश लोग एक-दूसरे को ‘राम राम जी’ या ‘जय सियराम जी की’ रुपी अभिवादन करना नहीं भूलते हैं। गांवों में तो अब भी अक्सर यह कहा जाता है कि “जहां राम वहां गाम(गांव)”। भारत के हर गाँव में श्रीराम को आदर्श पुरूष माना जाता है, श्रीराम के सबसे प्रिय भक्त हनुमानजी का हर गाँव के खेड़ापति के रूप में सर्वोच्च स्थान है। जहां श्रीराम है वहीं दुख हरता हनुमान है।

भारतीय लोकमानस में राम नाम व रामराज्य की जड़ें बहुत गहराई तक है। और अब जब ५०० वर्षों के बाद अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर बनने जा रहा है तो हर “राम भक्त” के लिए यह ऐतिहासिक क्षण कोरोना जैसी महामारी में भी सुखद संस्कृति व स्वास्थ्य की संजीवनी बूटी रूपी हैं।

‛राम नाम’ की महिमा ऐसे है कि इसे पत्थर पर भी लिख दिया जाए तो वह पत्थर तैरने लगता है और वही श्रीराम जी पत्थर को स्पर्श कर दे तो वह प्राणवान होकर अहिल्या हो जाए। इसलिए राम की महिमा अपरंपार है। लेकिन आधुनिक विज्ञानवादी व भौतिकवादीयों को राम चरित्र कम ही समझ आता है। समझ आये भी कैसे, इन तथाकथित नास्तिकों ने पाश्चात्य संस्कृति के चश्मे जो पहन रखे हैं। ऐसे लोगों के लिए इतना ही कह सकते हैं कि “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।”

श्रीराम ने अपनी श्रेष्ठ मर्यादाओं को सर्वदा सर्वोच्च स्थान दिया। उनका पालन किया और उसी कारण से वे ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’ कहलाए। आज भी भारतवर्ष में जनमानस द्वारा अपने जीवन में उन श्रेष्ठ शिक्षाप्रद मर्यादाओं की यथासंभव अनुपालना की अपेक्षा की जाती है।

जन-जन के मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम – भाग १

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