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प्रत्याशा नितिन- एक साक्षात्कार

मैसूर की रहने वाली प्रत्याशा नितिन एक उभरती हुयी इस पीढ़ी की नौजवान चित्रकार और लेखिका हैं | इन्होने हालही में एक लघुकथा प्रकाशित की है और इंडिक टुडे ने इस मौके पे उनसे उनके लेखन और चित्रकारिता पे बातचीत की | इस साक्षात्कार के द्वारा हमने पायी एक झलक प्रत्याशा के जीवन व उनके बहुमुखी प्रतिभा की उनके ही बोलों में, आइये हमारे साथ मायापाश के इस दिव्य चित्रपट पे…

प्र १ : आपने शिक्षण अभियांत्रिकी में किया हैं फिर आपने चित्रकारी और लेखन की तरफ कैसे मोड़ लिया ?

यह एक बहुत ही रोचक प्रश्न है | आजकल ऐसा बहुत से लोग कर रहे हैं कि वे शिक्षा किसी और ही विषय की लेते हैं और बाद में किसी और ही विषय की और झुक जाते हैं | सच यह है कि मुझे भान ही नहीं था कि मैं चित्रकारी या लेखन जैसी कलाओं से कभी जुडूँगी या मुझमें इस प्रकार की कोई प्रतिभा है | अभियांत्रिकी तो मैंने भेंड़चाल में ले ली थी | मेरे भाई अभियांत्रिकी में थे | उन्हें उसमें बहुत रूचि थी, अब भी है | परन्तु मैंने इसलिए ली क्योंकि मुझे नहीं मालुम था कि मेरी रूचि है किसमें | बस इतना पता था कि अभियांत्रिकी या चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में आप आर्थिक रूप से संपन्नता पा सकते हैं |

मेरी इन प्रतिभाओं से मेरा साक्षात्कार मेरे पति नितिन श्रीधर ने कराया | आज से लगभग नौ साल पहले उनकी नजर मेरे बनाये कृष्ण के एक चित्र पर पड़ी जो मैंने यूं ही समय काटने के लिए बना दी थी | उनके बाद वे मुझे अक्सर बोलते रहते कि मेरे अन्दर ये प्रतिभा है और मुझे इस पर काम करने की जरूरत है | उनके प्रोत्साहन और समय समय पर दी समालोचनाओं के कारण ही मैंने चित्रकारिता को गंभीरता से लेना शुरू किया | आज भी जब भी कोई चित्र बनाने बैठती हूँ तो नितिन उसके बारे में शोध करने में मेरी सहायता करते हैं |

अगर लेखन की बात करें तो छोटे से ही मेरा मन अलग अलग कल्पनाओं में डूबा रहता था | पहली बार कुछ लिखने की इच्छा मेरे मन में २०१३ में आई और नितिन ने इसके लिए भी बहुत प्रोत्साहित किया | उस समय मैंने अपना पहला उपन्यास केवल पंद्रह दिन में लिख डाला था | पर उस समय मेरी लेखन शैली उतनी परिपक्व नहीं थी | इस कारण उस समय लिखी कहानियों को मैंने प्रकाशित करने की कोशिश नहीं की | २०१६ में मुझे एक Indic Academy द्वारा आयोजित ऑनलाइन फिक्शन राइटिंग कोर्स “Fundamentals of Writing Short Fiction”  में भाग लेने का मौका मिला | जिसके बाद मेरे लेखनशैली में काफी परिवर्तन आया |

हिंदी में लिखने का विचार मुझे सी.के. नागराजराव जी की पट्टमहादेवी शान्तला का हिंदी अनुवाद पढ़ने के बाद आया | मुझे लगा कि मैं अपनी कल्पनाओं को हिंदी में ज्यादा सरल और रोचक तरीके से व्यक्त कर सकती हूँ | और तभी से मैंने हिंदी कहानियाँ लिखनी शुरू कर दीं |

३२ गणपति

प्र २ : आपके पसंदीदा लेखक कौन से हैं ? आपको कैसे कहानियां पसंद हैं ?

साहसपूर्ण और रहस्यपूर्ण कहानियां मुझे बहुत पसंद हैं | साथ ही ऐसी कहानियाँ जो हमारे प्राचीन भारत की जीवनशैली पर आधारित हैं, या फिर धर्म की किसी जटिलता को सुलझाती कहानी, भक्ति के रस से परिपूर्ण कहानी, ऐसी कहानियाँ जो हमें आजकल के नीरस जीवन से दूर एक अलग दिशा में ले जाएँ और ऐसी कहानियाँ जो कहानी पूरी पढ़ जाने के बाद भी कई दिनों तक हमें उसी कहानी में डुबाये रखने की क्षमता रखती हों |

मेरे पसंदीदा लेखक जॉर्ज आर आर मार्टिन एवं प्रेमचंद्र हैं | मुझे सी.के. नागराजराव की पट्टमहादेवी शान्तला और खालिद होसेनी की A Thousand Splendid Suns बहुत पसंद हैं |

प्र ३ : आपकी चित्रकारिता ज़्यादातर पौराणिक कहानी और देवतायों पर आधारित हैं | क्या आप किसी चित्र की कल्पना करते वक़्त उसके लिए कुछ अभ्यास करती हैं ? क्या आप अध्ययन करने के बाद ही चित्र बनाती हैं ?

जी, मेरे ज्यादातर चित्र देवी या देवताओं के हैं | मैंने और भी प्रकार के चित्र बनाये हैं पर उनमें मुझे उस प्रकार की परिपूर्णता का अहसास नहीं होता जो हमारे देवी देवताओं के चित्र बनाने पर होता है | मुझे लगता है कि मेरे बनाये ये चित्र मुझे भगवान के उस रूप से हमेशा के लिए जोड़ देते हैं | मैं उस रूप को महसूस कर सकती हूँ उनसे बातें कर सकती हूँ, और यह एक बहुत ही अलग प्रकार का अनुभव है |

भगवान का चित्र बनाना दूसरी तरह की चित्रकारिता से काफी अलग होता है क्योंकि इन चित्रों में आप अकल्पनीय को कल्पनीय बनाने की कोशिश करते हैं | हम यहाँ पर उन ऋषियों के दिए ध्यान मन्त्रों पर निर्भर करते हैं जिन्हें उस रूप का साक्षात्कार हुआ था | उनके दिए ध्यान मन्त्र हमें उस रूप की कल्पना करने की शक्ति देते हैं |

कल्पतरु रिसर्च अकैडमी द्वारा प्रकाशित एस के रामचंद्र राव की रचित देवता रूपमाला में एक देवी या देवता के चित्र या प्रतिमा बनाने से पहले कलाकार के लिए कुछ नियम बताये गए हैं | ये तक कहा गया है कि कलाकार को अपनी सामान्य जीवनशैली त्यागकर, अपने खाने पीने पर नियंत्रण कर एकाग्रचित्त होकर उस स्वरूप के ध्यान में लग जाना चाहिए | सुबह से लेकर रात तक हर समय कलाकार का मन उसी स्वरूप में स्थित हो जाना चाहिए | और जब वो स्वरूप कलाकार के मन में पूरी तरह से आकार ले ले, तभी उसे उस चित्र या प्रतिमा का निर्माण प्रारम्भ करना चाहिए |

पूरी तरह से मैं इन नियमों का पालन करती हूँ, ऐसा नहीं कहूँगी | पर जब भी मेरे मन में किसी देवी या देवता का चित्र बनाने की इच्छा आती है तो मैं लगभग पंद्रह बीस दिन पहले से उस रूप के बारे में सोचना शुरू करती हूँ | उसके बारे में जो भी शोध कर सकती हूँ, करती हूँ | वो देवी या देवता किस रंग के हैं, उनका स्वभाव क्या है, उनके कितने हाथ हैं और उन हाथों में वे क्या शस्त्र धारण किये हुए हैं, इस सबका अध्ययन करती हूँ | उस रूप का ध्यान करती हूँ और जब मुझे लगता है कि मेरा मन अब इस चित्र को बनाने के लिए तैयार है तब उस पर काम करना शुरू करती हूँ |

प्र ४ :  काल्पनिक कहानियां लिखने के पीछे कोई ख़ास उद्देश्य ?

काल्पनिक कहानियाँ व्यक्ति का जीवन बदल देने की शक्ति रखती हैं | और इसकी शुरुआत स्वयं लेखक से होती है | एक लेखक अपने आसपास के जीवन, उसमें हो रही घटनाओं को देख उन्हीं घटनाओं को तोड़ मरोड़ कर अपने मन में कई कल्पनाएँ रच लेता है | इनमें से कुछ कल्पनाएँ लेखन के माध्यम से लोगों तक पहुँच जाती हैं और कुछ हमेशा के लिए सिर्फ लेखक के साथ ही रह जाती हैं | एक लेखक अपनी इन्हीं कल्पनाओं के माध्यम से अलग अलग भावों को अपने मन में ही जी लेता है | यहीं कल्पनाएँ उसकी सोचने की शक्ति को और परिपक्व बनाती हैं |

और जब लेखक की कल्पनाओं से परिपूर्ण कहानियाँ पाठकों तक पहुँचती हैं तो वे इन कहानियों में मग्न हो यह भूल जाते हैं कि वह सिर्फ एक कल्पना पर आधारित है | वे उसमें हो रही घटनाओं को अपने जीवन से जोड़ कर देखते हैं | उनके पात्रों में स्वयं घुस जाते हैं और एक अलग ही संसार में खो जाते हैं | वे पात्रों को अपनी सोच के हिसाब से टटोलते हैं; उनकी बेवकूफियों पर हंसते हैं; उनके दुःख में रो देते हैं; और कहीं ना कहीं उस काल्पनिक जीवन में हो रही हर एक घटना पर अपना एक मत बना लेते हैं | इस प्रकार कह सकते हैं कि ये काल्पनिक कहानियां जितना हमारे मन पर प्रभाव डालती हैं उतना प्रभाव कोई भी सत्य घटना या शोधलेखन नहीं डाल सकता |

मेरी अपनी कहानियाँ ज्यादातर भक्ति भाव से परिपूर्ण रहती हैं | मेरा मानना है लोगों के मन में इस एक भाव की कमी हो जाने के कारण आज धर्म संकट में हैं | हम अपने भौतिकवादी जीवन में इतना मग्न हो चुके हैं कि सत्य से बहुत दूर भटक गए हैं | मेरी कहानियों का उद्देश्य लोगों को वापस उसी सत्य की ओर लाना है | उनके मन में मेरी कहानियाँ पढ़कर भक्तिभाव जागे, धर्म की पुनः स्थापना हो तो मेरी कहानियाँ और जीवन दोनों ही सार्थक होगा |

प्र ५ :  क्या भगवान का चित्र बनाने के लिए चित्रकार का मूल स्वाभाव आध्यात्मिक होना ज़रूरी हैं ?

मुझे तो ऐसा ही लगता है | वैसे भगवान का चित्र कोई भी चित्रकार बना सकता है, अगर हम भगवान को भगवान जैसा देखने के वजाय सिर्फ एक विषय के रूप में देखें | परन्तु एक भक्ति भावना से परिपूर्ण चित्रकार के चित्र में जिस प्रकार भगवान जीवंत हो उठते हैं वो आपको सभी के चित्रों में नहीं दिखेगा |

एक साधारण सा उदारहण देती हूँ | आप किसी भी प्राचीन मंदिर में जाइए और वहाँ स्थित भगवान की प्रतिमा को देखिये और फिर आजकल के नए मंदिरों में स्थित भगवान की प्रतिमा को देखिये, आप को अंतर साफ़ दिखेगा | प्राचीन मंदिर की उन प्रतिमाओं में जो शक्ति आप महसूस करेंगे वो शक्ति आपको आजकल की बहुत सारी प्रतिमाओं में नहीं दिखेंगी |

देवी देवताओं के चित्र एम एफ हुसैन ने भी बनाए थे और बहुत प्रसिद्द भी हुए, पर उनके बनाए एक भी चित्र में आपको वो भाव नहीं देखने को मिलेंगे जो आपको केशव वेंकटराघवन जी (प्रसिद्द चित्रकार) के बनाए चित्रों में देखने को मिल जाएगा | इसलिए आध्यात्मिकता और भक्ति भाव से रहित रहकर बनाए चित्र सिर्फ चित्र हो सकते हैं; सजीवता तो उन चित्रों में केवल चित्रकार के मन के भाव से ही आ सकती है |

कोल्हापुरी लक्ष्मी

प्र ६. मायापाश के कथानक की प्रेरणा कैसे या कहां से मिली ? इसको लिखने मे आपको कितना समय लगा?

मायापाश कहानी लिखने का विचार जब पहली बार मन में आया तब यह कहानी आज के समय पर आधारित थी | मूल कल्पना यह थी कि एक गाँव में एक असभ्य लड़का एक पागल सी दिखने वाली लड़की के साथ छेड़छाड़ करता है और उसके बाद उस लड़के के जीवन में तूफान खड़े होना चालू होते हैं | कहानी मेरे मन में आजकल हर जगह हो रहे स्त्रियों के अपमान, उनके साथ हो रही छेड़छाड़ की खबरें आयेदिन पढ़ते हुए आई थी | मुझे लगा कि लोग भूल गए हैं कि जब सीता का अपहरण हुआ तो अपहरण करने वाले रावण का संहार ही हुआ, द्रौपदी के अपमान ने महाभारत जैसे युद्ध की नींव रख दी | समय चाहे कितना भी बदल जाए पर धर्म की परिभाषा नहीं बदलती | एक स्त्री का सम्मान सामान्य धर्म में आता है | यह ऐसा नियम है जो लोगों के आचरण में घुट्टी जैसा घुला होना चाहिए | पर जैसे जैसे लोग धर्म से दूर जा रहे हैं, वे इन साधारण नियमों को भूलते जा रहे हैं |

इस कारण मैं ऐसी कहानी लिखना चाहती थी जो वापस लोगों को इस बात का स्मरण कराये कि एक स्त्री का अपमान करना कितना बड़ा अपराध है | पर जैसे जैसे मैं कहानी के बारे में सोचती गयी मेरे मन में कहानी का रूप बदलता गया | हो सकता है कि भविष्य में मैं कहानी के मूल विचार को ध्यान में रखते हुए एक अलग ही कहानी लिख दूँ |

कहानी लिखने में मुझे लगभग तीन से चार दिन लगे | एक बार कहानी का सही स्वरूप मन में आ जाए तो फिर उसे लिखने में ज्यादा समय नहीं लगता | विचार इतनी तेजी से मन में आते हैं कि आपके हाथों की गति आपको कम मालूम देने लगती है |

प्र ७. आपको इनमें से क्या सबसे महत्वपूर्ण लगता है और क्यों ? – 1) शक्तिशाली पात्र 2) आश्चर्यकारी / उत्तेजक मोड़ 3) या कथानक की पृष्ठभूमि

सबका अपना ही महत्त्व है और सब एक दूसरे से जुड़े हुए ही हैं | सबसे पहले तो कहानी की पृष्ठभूमि का प्रबल होना बहुत आवश्यक है | पृष्ठभूमि का कमजोर होना किसी घर की नींव के कमजोर होने जैसा है | अगर नींव ही कमजोर है तो घर कैसे मजबूत होगा ? और एक कहानी के पृष्ठभूमि के प्रबल होने के लिए उसमें शक्तिशाली पात्रों का होना आवश्यक है | शक्तिशाली का तात्पर्य यह नहीं कि उनमें कोई दोष नहीं या वो हर जगह जाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करें | इसका तात्पर्य यह है कि उनके चरित्र शक्तिशाली होने चाहिए | उनकी सोच प्रबल होनी चाहिए | ऐसी जो पढने वाले के मन पर प्रभाव कर सके | जो एक पाठक को सरलता से पात्र से जोड़ दे और साथ ही साथ समय समय पर उसे विस्मय में भी डाल दे | और एक पात्र के पाठक को विस्मय में डालने के लिए उसके जीवन में आश्चर्यकारी मोड़ तो होने ही चाहिए | क्योंकि यहीं मोड़ तो उसके जीवन को रोचक और चुनौतीपूर्ण बनाते हैं | इसलिए प्रबल पृष्ठभूमि, शक्तिशाली पात्र और आश्चर्यकारी मोड़ तीनों का एक सही मिश्रण कहानी को जीवंत करने के लिए बहुत आवश्यक है |

प्र ८. काल्पनिक कहानियों के पात्र व जगहों के नाम आप कैसे तय करती हैं

कहानी के पात्रों और जगहों के नाम सोचने के लिए मैं थोड़ा समय लेती हूँ | मुझे नाम ऐसे रखने पसंद हैं जो अर्थपूर्ण हों और जिनका कहानी से कुछ सम्बन्ध हो या जो पात्र के चरित्र को दर्शाते हों | इसके लिए मैं उस चरित्र से सम्बंधित किसी शब्द को लेकर उसपर विचार करती हूँ | संस्कृत शब्दकोष में ऐसे शब्द ढूंढती हूँ जिन्हें एक नाम के रूप में ढाला जा सके | ज्यादातर जब तक मैं नाम को लेकर निश्चित नहीं हो जाती, तब तक मेरी कहानी आगे नहीं बढ़ती |

प्र ९. आगे भविष्य मे आप लेखिका या चित्रकार – अपने कौन से रूप से अधिक जानीं जाना चाहती हैं और क्यों?

एक लेखिका जो अपनी कहानियों को चित्रों में ढाल दे और एक चित्रकार जिसके चित्र लोगों से एक कहानी कह जाएँ | ना मेरे अन्दर की लेखिका मुझसे अलग है और ना ही चित्रकार | दोनों में से एक भी पीछे छूटा तो यह खुद को पीछे छोड़ जाने जैसा होगा |

मायापाश कहानी के कुछ अंश –

“महाराज, उस दिन राजप्रासाद पहुँचते पहुँचते ना जाने कैसे हमें विलम्ब हो गया | हम रास्ता भटक गए और रात्रि के दूसरे पहर महल में पहुँचे | हमने उस स्त्री को रानीनिवास के कारागृह में भेज दिया और स्वयं आपके कक्ष आपको सारी घटना का विवरण देने के लिए निकल पड़े | रास्ते में हमें राजपुरोहित जी मिले जिन्होंने हमें आपके अस्वस्थ होने का समाचार दिया और अगले दिन प्रातःकाल ही आपके दर्शन करने का आग्रह किया | पहले हमने सोचा कि उन्हें ही इस घटना का विवरण दे दें, परन्तु हमें लगा कि सर्वप्रथम हमें आपको इसका विवरण देना चाहिए | संभवतः हम अपने मद में इतना चूर थे कि हमें विश्वास था कि आप यह सब सुनकर हम पर गर्व करेंगे | इस कारण जब राजपुरोहित जी ने हमसे हमारी यात्रा के बारे में प्रश्न किया तो हमने उन्हें केवल इतना ही कहा कि यात्रा सफल रही |”

“तो क्या आपको गणपति महाराज के दर्शन नहीं हुए ?” राजपुरोहित जी ने पूछा |

“नहीं, हमें ना जाने कैसे ये स्मरण ही नहीं रहा कि हम वहाँ दर्शन करने गए थे | उस समय एक मार्गदर्शक की भांति भीमसेन ने हमें यह स्मरण कराया भी कि हमने गणपति महाराज के दर्शन नहीं किये | परन्तु हम इतने भ्रम में थे कि हमें उस स्त्री को महल ले कर आना दर्शन करने से ज्यादा महत्वपूर्ण लगा | हममें वहाँ और थोड़ी देर प्रतीक्षा करने का धैर्य बिल्कुल नहीं था | अब सोचते हैं तो समझ आता है कि गुरुजन सत्य ही कहते हैं, जब व्यक्ति पर महामाया का प्रभाव होना प्रारम्भ होता है तो वह अपना विवेक खो बैठता है |”

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